• सोनार की तकदीर

    सोनार की तकदीर: Story that will change your thought process

    • 2021-03-31 00:45:46
    • Puplic by : Admin
    • Written by : Unknown
    एक बार किसी देश का राजा अपनी प्रजा का हाल-चाल पूछने के लिए गाँवों में घूम रहा था। घूमते-घूमते उसके कुर्ते का सोने के बटन की झालन टूट गई, उसने अपने मंत्री से पूछा, कि इस गांव में कौन सा सोनार है, जो मेरे कुर्ते में नया बटन बना सके? उस गांव में सिर्फ एक ही सोनार था, जो हर तरह के गहने बनाता था, उसको राजा के सामने ले जाया गया। राजा ने कहा, कि तुम मेरे कुर्ते का बटन बना सकते हो? सोनार ने कहा, यह कोई मुश्किल काम थोड़े ही है ! उसने, कुर्ते का दूसरा बटन देखकर, नया बना दिया। और राजा के कुर्ते में फिट कर दिया। राजा ने खुस होकर सोनार से पूछा, कि कितने पैसे दूं? सोनार ने कहा :- "महाराज रहने दो, छोटा सा काम था।" उसने, मन में सोचा, कि सोना राजा का था, उसने तो सिर्फ मजदूरी  की है। और राजा से क्या मजदूरी लेनी...! राजा ने फिर से सोनार को कहा कि, नहीं-नहीं, बोलो कितने दूं? सोनार ने सोचा, की दो रूपये मांग लेता हूँ। फिर मन में विचार आया, कि कहीं राजा यह न सोचले की, एक बटन बनाने का मेरे से दो रुपये ले रहा है, तो गाँव वालों से कितना लेता होगा, और कोई सजा न दे दे। क्योंकि उस जमाने में दो रुपये की कीमत बहुत होती थी। सोनार ने सोच-विचार कर, राजा से कहा कि :- "महाराज जो भी आपकी इच्छा हो, दे दो।" अब राजा तो राजा था। उसको अपने हिसाब से देना था। कहीं देने में उसकी इज्जत ख़राब न हो जाये। और, उसने अपने मंत्री को कहा, कि इस सोनार को दो गांव दे दो, यह हमारा हुक्म है। यहाँ सोनी जी, सिर्फ दो रुपये की मांग का सोच रहे थे, मगर, राजा ने उसको दो गांव दे दिए। इसी तरह, जब हम प्रभु पर सब कुछ छोड़ते हैं, तो वह अपने हिसाब से देता है और मांगते हैं तो सिर्फ हम मांगने में कमी कर जाते हैं। देने वाला तो पता नहीं क्या देना चाहता है, लेकिन, हम अपनी हैसियत से बड़ी तुच्छ वस्तु मांग लेते हैं |

    इसलिए संत-महात्मा कहते है, ईश्वर को सब कुछ अपना सर्मपण कर दो, उनसे कभी कुछ मत मांगों, जो वो अपने आप दें, बस उसी से संतुष्ट रहो। फिर देखो इसकी लीला। वारे के न्यारे हो जाएंगे। जीवन मे धन के साथ "सन्तुष्टि" का होना जरूरी है | 

    Bonus Story - जैसा खाओ अन्न,वैसा होवे मन

    बासमती चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से साँठ-गाँठ हो गयी। सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगा । सेठ ने सोचा कि इतना पाप हो रहा है , तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए। एक दिन उसने बासमती चावल की खीर बनवायी और एक अच्छे विरक्त साधु बाबा को आमंत्रित कर भोजनप्रसाद लेने के लिए प्रार्थना की। और वो साधु बाबा जी भी आ गए बाबा ने बासमती चावल की खीर भी खायी। दोपहर का समय था । सेठ ने कहाः "बाबा जी ! अभी आराम कीजिए । थोड़ी धूप कम हो जाय फिर पधारियेगा। साधु बाबा ने बात स्वीकार कर ली। सेठ ने 100-100 रूपये वाली 10 लाख जितनी रकम की गड्डियाँ उसी कमरे में रख दी किसी ने पेमेंट की हुई थी वहीं पर रख दी। साधु बाबा आराम करने लगे। खीर थोड़ी हजम हुई । साधु बाबा के मन में हुआ कि इतनी सारी गड्डियाँ पड़ी हैं, एक-दो उठाकर झोले में रख लूँ तो किसको पता चलेगा?  फिर मन में आया मैं साधु हूं मेरे को क्या जरूरत है इन पैसों की। लेकिन मन तो मन है ना मन में दोबारा उल्लेख आया एक-दो गड्डी उठा लेता हूं किसको क्या पता चलेगा साधु बाबा ने एक गड्डी उठाकर रख ली। शाम हुई तो सेठ को आशीर्वाद देकर चल पड़े। सेठ दूसरे दिन रूपये गिनने बैठा तो 1 गड्डी (दस हजार रुपये) कम निकली। सेठ ने सोचा कि महात्मा तो भगवतपुरुष थे, वे क्यों लेंगे.? सेठ थोड़ा कड़क था तो उसने सोचा कि नौकरों की ही करामात है। नौकरों की धुलाई-पिटाई चालू हो गयी। ऐसा करते-करते दोपहर हो गयी। इतने में साधु बाबा आ पहुँचे तथा अपने झोले में से गड्डी निकाल कर सेठ को देते हुए बोलेः "नौकरों को मत पीटना, गड्डी मैं ले गया था।

    सेठ ने कहाः "बाबा जी ! आप क्यों लेंगे ? जब यहाँ नौकरों से पूछताछ शुरु हुई तब कोई भय के मारे आपको दे गया होगा । और आप नौकर को बचाने के उद्देश्य से ही वापस करने आये हैं क्योंकि साधु तो दयालु होते है।"  साधु "यह दयालुता नहीं है । मैं सचमुच में तुम्हारी गड्डी चुराकर ले गया था। साधु ने कहा सेठ  तुम सच बताओ कि तुम कल खीर किसकी और किसलिए बनायी थी ?"

    सेठ ने सारी बात बता दी कि स्टेशन मास्टर से चोरी के चावल खरीदता हूँ, उसी चावल की खीर थी। साधु बाबाः "चोरी के चावल की खीर थी इसलिए उसने मेरे मन में भी चोरी का भाव उत्पन्न कर दिया। सुबह जब पेट खाली हुआ, तेरी खीर का सफाया हो गया तब मेरी बुद्धि शुद्ध हुई कि 'हे कान्हा.... यह क्या हो गया? मेरे कारण बेचारे नौकरों पर न जाने क्या बीत रही होगी । इसलिए तेरे पैसे लौटाने आ गया । "इसीलिए कहते हैं कि जैसा खाओ अन्न ... वैसा होवे मन।

    जैसा पीओ पानी वैसी होवे वाणी। जैसी शुद्धी,  वैसी बुद्धि जैसे विचार, वैसा संसार  | इसलिए हमेशा यह बात ध्यान में रखो नीति मार्ग से कमाया हुआ धन उसी का भोजन करो उसी का दान  करो


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