• Problem-Solving Techniques for a Stress-Free Lifestyle

    Problem Solving: Practical Tips for a Stress-Free Life
    • Posted By : Admin
    • 2021-06-13
    • 2

    आज की बात –   नजर बदलिये नजारे बदल जायेंगे – बात बहुत ही साधारण सी है लेकिन फिर हम समझ नहीं पाते | व्यक्ति कभी भी अपनी नजर को दोष नहीं देता हमेशा नजारों को ही खराब बताता है | अगर हमीं ये साधारण सी बात भी समझ आ जाए तो हमारी जिन्दगी की बहुत सारी छोटी , बड़ी समस्याओं का समाधान हमें मिल सकता है | एक बहुत ही कडवे सच के साथ आपको इस बात को आपको समझाता हूँ |

    आजकल रोज हमारे देश को , भारत माता के दामन को शर्मसार करने वाली घटनायें लड़कियों के साथ हो रही हैं | जब भी ऐसी कोई घटना मीडिया में बडा रूप ले लेती है तो न्यूज़ चैनल पर अपने आपको देश का सबसे समझदार समझने वाले लोग ऐसे बहस करते नजर आते हैं | जिनको देख कर शर्मिंदगी के सिवा और  कुछ हासिल नहीं होता | सच में गली के .......... भी ऐसे नहीं लड़ते जैसे न्यूज़ चैनल पर देश के सबसे समझदार और ईमानदार व्यक्ति लड़ रहे होते हैं चलिये विषय यह नहीं इस विषय पर कभी और बात करेंगे  | कोई लड़कों को दोषी बतलाता है , कोई बदलते हालातों को , कोई लड़कियों के कपड़ों को और सब अपना - अपना राग अलाप रहे होते हैं |

    चलिये बात करते हैं लड़कियों के कपड़ों की , ड्रेस सेंस बदला है – बहुत तेजी से बदला है – यंहा विषय ये भी नहीं है कि कौन सा ड्रेस सेंस सही है या कौन सा गलत है | पहला सवाल अगर ड्रेस सेंस बदला है तो लगभग हर घर का बदला है –जो लोग ये बात बोलते हैं कि लड़कियों के कपड़ों के कारण उनके साथ ऐसा हो गया तो बस एक सवाल उनसे पूछता हूँ , अगर उनकी बहन या बेटी ऐसे कपडे पहने , जिन्हें हम लड़कियों के  साथ होने वाली दुर्घटना का कारण  बताते हैं तो क्या उनकी निगाह उनकी अपनी बहन , बेटी के प्रति गन्दी हो जाती ? अगर हाँ तो मैं मान सकता हूँ हाँ कपड़ों का ही दोष था अगर नहीं तो दोष – नजारों का नहीं नजरों का था |

    वो 3 , 4 ,5 ,6 ,7,8  साल की बच्ची उसके साथ दुर्घटना , क्या उसकी ड्रेस के कारण ही होती होगी ? उसके साथ भी दुर्घटना देर रात तक बहार घुमने के कारण ही होती होगी ?

    ऐसी दुर्घटनाओं का कारण नजारा नहीं , हमारी नजर है |

    चलिये और समझते हैं कुछ लोग हमें अच्छे लगते हैं , कुछ लोग बुरे लगते हैं – जो लोग हमें पसंद हैं उनकी कही कडवी बात भी हमें बुरी नहीं लगती और जो लोग हमें अच्छे नहीं लगते उनकी सही बात / सही नसीहत भी बुरी लग जाती है |

    भगवान की मूर्ति है क्या , है तो पत्थर ही , श्रध्दा से सर झुका देते हो इसलिए वह पत्थर भी भगवान बन जाते है | नजारे नहीं बस नजर का महत्त्व है | मानों तो गंगा मां है ना मानो तो बहता पानी


    अगर नजारे अच्छे देखना चाहते हो तो अपनी नजर साफ़ करो |

    चलिये आपको एक कहानी सुनाता हूँ ...

     एक बार की बात है , एक नौविवाहित जोड़ा किसी किराए के घर में रहने पहुंचा . अगली सुबह , जब वे नाश्ता कर रहे थे , तभी पत्नी ने खिड़की से देखा कि सामने वाली छत पर कुछ कपड़े फैले हैं , – “ लगता है इन लोगों को कपड़े साफ़ करना भी नहीं आता …ज़रा देखो तो कितने मैले लग रहे हैं ? “

    पति ने उसकी बात सुनी पर अधिक ध्यान नहीं दिया .

    एक -दो दिन बाद फिर उसी जगह कुछ कपड़े फैले थे . पत्नी ने उन्हें देखते ही अपनी बात दोहरा दी ….” कब सीखेंगे ये लोग की कपड़े कैसे साफ़ करते हैं …!!”

    पति सुनता रहा पर इस बार भी उसने कुछ नहीं कहा .

    पर अब तो ये आये दिन की बात हो गयी , जब भी पत्नी कपडे फैले देखती भला -बुरा कहना शुरू हो जाती .

    लगभग एक महीने बाद वे यूँहीं बैठ कर नाश्ता कर रहे थे . पत्नी ने हमेशा की तरह नजरें उठायीं और सामने वाली छत की तरफ देखा , ” अरे वाह , लगता है इन्हें अकल आ ही गयी …आज तो कपडे बिलकुल साफ़ दिख रहे हैं , ज़रूर किसी ने टोका होगा !”

    पति बोल , ” नहीं उन्हें किसी ने नहीं टोका .”

    ” तुम्हे कैसे पता ?” , पत्नी ने आश्चर्य से पूछा .

    ” आज मैं सुबह जल्दी उठ गया था और मैंने इस खिड़की पर लगे कांच को बाहर से साफ़ कर दिया , इसलिए तुम्हे कपडे साफ़ नज़र आ रहे हैं . “, पति ने बात पूरी की .

    ज़िन्दगी में भी यही बात लागू  होती है : बहुत बार हम दूसरों को कैसे देखते हैं ये इस पर निर्भर करता है की हम खुद अन्दर से कितने साफ़ हैं . किसी के बारे में भला-बुरा कहने से पहले अपनी मनोस्थिति देख लेनी चाहिए और खुद से पूछना चाहिए की क्या हम सामने वाले में कुछ बेहतर देखने के लिए तैयार हैं या अभी भी हमारी खिड़की गन्दी है

     

    आज की बात –   नजर बदलिये नजारे बदल जायेंगे – बात बहुत ही साधारण सी है लेकिन फिर हम समझ नहीं पाते | व्यक्ति कभी भी अपनी नजर को दोष नहीं देता हमेशा नजारों को ही खराब बताता है | अगर हमीं ये साधारण सी बात भी समझ आ जाए तो हमारी जिन्दगी की बहुत सारी छोटी , बड़ी समस्याओं का समाधान हमें मिल सकता है | एक बहुत ही कडवे सच के साथ आपको इस बात को आपको समझाता हूँ |

    आजकल रोज हमारे देश को , भारत माता के दामन को शर्मसार करने वाली घटनायें लड़कियों के साथ हो रही हैं | जब भी ऐसी कोई घटना मीडिया में बडा रूप ले लेती है तो न्यूज़ चैनल पर अपने आपको देश का सबसे समझदार समझने वाले लोग ऐसे बहस करते नजर आते हैं | जिनको देख कर शर्मिंदगी के सिवा और  कुछ हासिल नहीं होता | सच में गली के .......... भी ऐसे नहीं लड़ते जैसे न्यूज़ चैनल पर देश के सबसे समझदार और ईमानदार व्यक्ति लड़ रहे होते हैं चलिये विषय यह नहीं इस विषय पर कभी और बात करेंगे  | कोई लड़कों को दोषी बतलाता है , कोई बदलते हालातों को , कोई लड़कियों के कपड़ों को और सब अपना - अपना राग अलाप रहे होते हैं |

    चलिये बात करते हैं लड़कियों के कपड़ों की , ड्रेस सेंस बदला है – बहुत तेजी से बदला है – यंहा विषय ये भी नहीं है कि कौन सा ड्रेस सेंस सही है या कौन सा गलत है | पहला सवाल अगर ड्रेस सेंस बदला है तो लगभग हर घर का बदला है –जो लोग ये बात बोलते हैं कि लड़कियों के कपड़ों के कारण उनके साथ ऐसा हो गया तो बस एक सवाल उनसे पूछता हूँ , अगर उनकी बहन या बेटी ऐसे कपडे पहने , जिन्हें हम लड़कियों के  साथ होने वाली दुर्घटना का कारण  बताते हैं तो क्या उनकी निगाह उनकी अपनी बहन , बेटी के प्रति गन्दी हो जाती ? अगर हाँ तो मैं मान सकता हूँ हाँ कपड़ों का ही दोष था अगर नहीं तो दोष – नजारों का नहीं नजरों का था |

    वो 3 , 4 ,5 ,6 ,7,8  साल की बच्ची उसके साथ दुर्घटना , क्या उसकी ड्रेस के कारण ही होती होगी ? उसके साथ भी दुर्घटना देर रात तक बहार घुमने के कारण ही होती होगी ?

    ऐसी दुर्घटनाओं का कारण नजारा नहीं , हमारी नजर है |

    चलिये और समझते हैं कुछ लोग हमें अच्छे लगते हैं , कुछ लोग बुरे लगते हैं – जो लोग हमें पसंद हैं उनकी कही कडवी बात भी हमें बुरी नहीं लगती और जो लोग हमें अच्छे नहीं लगते उनकी सही बात / सही नसीहत भी बुरी लग जाती है |

    भगवान की मूर्ति है क्या , है तो पत्थर ही , श्रध्दा से सर झुका देते हो इसलिए वह पत्थर भी भगवान बन जाते है | नजारे नहीं बस नजर का महत्त्व है | मानों तो गंगा मां है ना मानो तो बहता पानी

    अगर नजारे अच्छे देखना चाहते हो तो अपनी नजर साफ़ करो |

    चलिये आपको एक कहानी सुनाता हूँ ...

     एक बार की बात है , एक नौविवाहित जोड़ा किसी किराए के घर में रहने पहुंचा . अगली सुबह , जब वे नाश्ता कर रहे थे , तभी पत्नी ने खिड़की से देखा कि सामने वाली छत पर कुछ कपड़े फैले हैं , – “ लगता है इन लोगों को कपड़े साफ़ करना भी नहीं आता …ज़रा देखो तो कितने मैले लग रहे हैं ? “

    पति ने उसकी बात सुनी पर अधिक ध्यान नहीं दिया .

    एक -दो दिन बाद फिर उसी जगह कुछ कपड़े फैले थे . पत्नी ने उन्हें देखते ही अपनी बात दोहरा दी ….” कब सीखेंगे ये लोग की कपड़े कैसे साफ़ करते हैं …!!”

    पति सुनता रहा पर इस बार भी उसने कुछ नहीं कहा .

    पर अब तो ये आये दिन की बात हो गयी , जब भी पत्नी कपडे फैले देखती भला -बुरा कहना शुरू हो जाती .

    लगभग एक महीने बाद वे यूँहीं बैठ कर नाश्ता कर रहे थे . पत्नी ने हमेशा की तरह नजरें उठायीं और सामने वाली छत की तरफ देखा , ” अरे वाह , लगता है इन्हें अकल आ ही गयी …आज तो कपडे बिलकुल साफ़ दिख रहे हैं , ज़रूर किसी ने टोका होगा !”

    पति बोल , ” नहीं उन्हें किसी ने नहीं टोका .”

    ” तुम्हे कैसे पता ?” , पत्नी ने आश्चर्य से पूछा .

    ” आज मैं सुबह जल्दी उठ गया था और मैंने इस खिड़की पर लगे कांच को बाहर से साफ़ कर दिया , इसलिए तुम्हे कपडे साफ़ नज़र आ रहे हैं . “, पति ने बात पूरी की .

    ज़िन्दगी में भी यही बात लागू  होती है : बहुत बार हम दूसरों को कैसे देखते हैं ये इस पर निर्भर करता है की हम खुद अन्दर से कितने साफ़ हैं . किसी के बारे में भला-बुरा कहने से पहले अपनी मनोस्थिति देख लेनी चाहिए और खुद से पूछना चाहिए की क्या हम सामने वाले में कुछ बेहतर देखने के लिए तैयार हैं या अभी भी हमारी खिड़की गन्दी है